Ancestors

पूर्वज

गोत्र एवं कुल देवी

भार्गव कुल प्रवर्तक महर्षि भृगु ऋग्वेद काल के ऋषि हैं। ब्रह्मा ने सृष्टि के सृजन एवं विकास की आकांक्षा से नो मानस पुत्रों को अपने शरीर से उत्पन्न किया जिनमें से एक भृगु भी थे। महर्षि भृगु को ब्रह्मा द्वारा किये गये यज्ञ की अग्नि से उत्पन्न माना जाता है। वरूण ने इन्हें दत्तक पुत्र बनाया। अतएव इनका नाम भृगुवारणी भी पड़ा। महषि भृगु की सन्तानें भार्गव कहलाई। हम लोग अपने को भृगु ऋषि के पुत्र च्यवन के वंशज मानते हैं जिनकी तपो भूमि वधूसर नदी के किनारे ढोसी की पहाड़ी पर थी और इस नदी व पहाड़ी के नाम से ही हम लोग ढंसर या ढूसर भार्गव ब्राह्मण कहलाये जो कि अब अपने नाम के साथ केवल भार्गव शब्द का ही प्रयोग करते हैं।

वैदिक साहित्य के अनुसार प्राचीन काल में भारतवर्ष के समस्त ब्राह्मण एक ही जाति में सम्मिलित थे - बाद में ये मूल सात वंशों में विभाजित हो गये जिनके नाम हैं - भार्गव, अंगिरस, अत्रेय, कश्‍यप, वशिष्ठ, आगस्त्य और कौशिक ये सातों वंश ऋषियों के नाम से जुडे़ हुए हैं। भृगु वंश ब्राह्मण वर्ण में प्राचीनतम है। उसके पश्‍चात निवास के प्रांतों के अनुसार भी ब्राह्मणों का नामकरण हुआ। सरस्वती नदी के आसपास के ब्राह्मण सारस्वत कहलाये, गुड प्रदेश(आधुनिक हरियाणा के आसपास) में रहने वाले गौड़, कान्य-कुब्ज या कन्नौज के आस-पास के कान्य-कुब्ज, मिथला अथवा बिहार के मैथिल, उत्कल अथवा उड़ीसा के उत्कल कहलाये। इसी प्रकार विन्ध्य के दक्षिण में रहने वाली पाँच ब्राह्मण जातियाँ गुर्जर(गुजरात),महाराष्ट्र(महाराष्ट्र), तैलंग(आन्ध्रप्रदे), कर्णाट(कर्नाटक) और द्रविड़(तमिलनाडु तथा केरल) हैं। कालांतर में ये सभी ब्राह्मण जातियाँ अनेक शाखाओं और प्रशाखाओं में विभक्त हो गई। इसी क्रम में गौड़ ब्राह्मणों का एक समूह अपने में एक पृथक जाति के रूप में अपना अस्तित्व रखने लगे और च्यवनवंशीं ढूसर भार्गव कहलाने लगे।

जैसे-जैसे इस जाति के अलग-अलग वंशों की बढ़ोत्तरी होती गई तो हमारे पूर्वजों ने गोत्रों का नामकरण कर समाज को निम्न छः गोत्रों में बाँट दिया जिनके नाम प्राचीन ऋषियों के नाम पर रख दिये गयेः

क्र. संगोत्र का शुद्व नामप्रचलित नाम
1.काश्‍यपिकश्‍यप
2.कोचहास्तिकुचलश
3.विद्‌बन्दलश
4.गांतोयगांगलश
5.गालवगोलश
6.वत्सुबछलस, बचलस

हमारी जाति का पूरा समाज आज भी इन्हीं छः गोत्रों में बँटा हुआ है। शुरू में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित था। जैसे-जैसे जाति के लोगों की जनसंखया बढ़ने लगी तो संगोत्री विवाह के बन्धन के कारण लड़के-लड़की की शादी में लोगों को कठिनाई महसूस होने लगी तो करीब 500 वर्ष पूर्व एक ही गोत्र में अलग-अलग कुटुम्ब के लोगों ने अपनी-अपनी कुलदेवी का नामकरण कर लिया और निर्णय किया कि गोत्र की बजाय एक ही कुलदेवी के लोगो में आपस में विवाह सम्बन्ध न किये जावें वे ही कुल देवियाँ और वे ही नियम वर्तमान में भी मान्य हैं। इस प्रकार हमारे समाज में लगभग 50-60 कुल देवियाँ हैं। इनके नाम हमारे पूर्वजों ने स्थानीय बोलचाल की भाषा में रख लिया। गोत्रों के प्रचलित नाम व कुल देवियाँ इत्यादि अग्र सारणी में स्पष्ट हो सकेंगी।

गोत्रों, प्रवरों, कुलदेवियों, वंश आदि के नामों की सूची

कुल देवता - वरूण    वेद - शुक्ल यजुर्वेद   उपवेद-धनुर्वेद
वंश - भार्गव   उपवंश - च्यवन   पाद - दाहिना
पूर्वजों का निकास स्थान या उद्‌गम - ढोसी
क्र. संगोत्रों के शुद्व नामगोत्रों के प्रचलित नामप्रवरकुल देवियाँ
1काश्‍यपिकश्‍यप, काश्‍यप, काशिव, काशी, कशपि, काशपी, कशप, कश्‍यपस, कच्छपभार्गव, वैतहव्य, सार्वेतमजाखन, जीवन, सनमत, अर्चट, चांवड, नागन फूसन, सोंडल, शंक्रा सोना, कोढ़ा
2कोचहास्तिकोचलस, कुचलस, कुचलश, कुत्स, कुछलस, कुछलश, कोछलस, कोछलश, कुचस, कच्छस, कोचलशभार्गव, च्यवन, और्व, जामदग्न्य, आप्नवानभैसा चढ़ी, नागन, नागन फूसन, कुलाहल
3विद्‌विदलस, बदलस, विदस, बिदलस, बिदलश, बिंदल, बदलश, वैद्य, बिदस, बनकस, वद, वादलिश, बंदलिस, बंदलस, बद, विदलश, बदलिस, बंदलशभार्गव, च्यवन, आप्नवान, और्व, वैदआंचल, नीमा, ब्राह्मणी, नागन, नागन फूसन, मंगोठी, बबूली, सूरजन, ककरा, शीतला, माहुल, ऊखल
4गात्रेयगागलस, गागलश, गांगवश, गांगावस, गांगेवश, गांगेवस, गांगलश, गांगलस, गार्गेय, गार्गेस, गार्गश, गागलिश, गार्गेयश, गार्गेयसभार्गव, च्यवन, आप्नवान, और्व, जामदग्न्यअंबा, नायन, चामुण्डा, रौसा-ईटा, रौसा, अर्चट, अपरा, ईटा
5गालवगोलस, गोलव, गोलश, गोलिश, गालविष, गोलिस, गोचलस, गोछलस, गोलवश, गोलवस, गोलविस, गोलविश, गालवस, गालविस, गालविश, गालव, गोलवभार्गव, च्यवन, आप्नवान, और्व, जामदग्न्यशक्रा, रौसा-ईटा, शाकम्भरी, नागन, रोसा
6वत्सबछलस, बछलश, बच्छश, बक्षस, वक्षस, बचलस, वकरक्ष, बगलश, बकरश, बगलस, वत्सस, वत्स, वात्स, बाछलिस, बाचलिस, वत, बत, वक्ष, बस, वस, बछ, बछस, बच्छस, बच्छ, वचलशभार्गव, च्यवन, आप्नवान, और्व, जामदग्न्यनागन, नागन फूसन, तामा, नायन, मुंडेरी, जाख, चावड़, ककरा, नागन स्याह, आंचल, नीमा, कनवस, ईंटा, ऊखल वामन